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Tuesday, December 7, 2010

आईना हूँ

आईना हूँ मैं मेरे सामने आकर देखो

खुद नज़र आओगे जो आँख मिला कर देखो

मेरे गम में मेरी तक़दीर नज़र आती है
डगमगाओगे मेरा दर्द उठा कर देखो

यूँ तो आसान नज़र आता है मंज़िल का सफ़र
कितना मुश्क़िल है मेरी राह से जाकर देखो

बज़्म का मेरी चरागाँ है नज़र का धोखा
किन अंधेरों में भटकता हूँ मैं आकर देखो

दिल तुम्हारा है, मैं यह जान भी दे दूं तुम पर
बस मेरा साथ ज़रा दिल से निभा कर देखो

मौत आने को है मगर तुम से वादा है मेरा
लौट आऊंगा तुम इक बार बुला कर देखो...

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