Pages

Tuesday, April 27, 2010

kabhi yu bhi aa

कभी यूँ भी आ मेरी आँख में, के मेरी नज़र को ख़बर न हो


मुझे एक रात नवाज़ दे, मगर उसके बाद सहर न हो



वो बड़ा रहीम-ओ-करीम है, मुझे ये सिफत भी अता करे

तुझे भूलने की दु‌आ करूँ, तो दु‌आ में मेरी असर न हो



कभी दिन की धूप में झूम के, कभी शब के फूल को चूम के

यूँ ही साथ साथ चलें सदा, कभी खत्म अपना सफर न हो



मेरे पास मेरे हबीब आ, ज़रा और दिल के क़रीब आ

तुझे धड़कनों में बसा लूँ मैं, के बिछड़ने का कभी डर न हो

No comments: